हिमाचल का अर्थ “शुभ्र बर्फ का आचल” इस नाम में ही इसकी सुन्दरता प्रदर्शित होती है। जैसा नाम वैसा ही इसका धाम है। जिसे देखने के लिए पूरी दुनियाँ के सैलानी (पर्यटक) आते है। यहाँ की हिम्माचछादित दुर्गम पहाड़िया, नदिया, झरने, मनमोहक वादियों से समृद्ध प्रदेश है। यहाँ के सभी मौसम का अंदाज बहुत ही निराला होता है। यहा का सौन्दर्य और प्राकृतिक संगीत सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
हिमाचल प्रदेश भारत के उत्तरी भाग में स्तिथ है। यह अपने भौगोलिक ,ऐतिहासिक, धार्मिक पर्यटन स्थल में भी काफी महशूर है। ” हिमाचल प्रदेश ” की हसीन वादियां, मन को हर्षोन्मत्त करनेवाली झीले, नयनाभिराम चोटियाँ, चारों ओर हरियालियों से ढके पर्वत, खूबसूरत नीले-नीले अबर की तरह दिखनेवाली नदियाँ, मदहोस करनेवाली हसीन वादिया पुरे विश्व में महशूर है। आज हम आपको इस राज्य के कुछ महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों से परिचित कराते हैं।
पर्यटन स्थल जम्मू कश्मीर की जानकारी
बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ, धुँवाधार झरने, नीले अंबर की तरह बहनेवाली नदियाँ एवं सुंदर वादियों से दरियादिल यह प्रदेश सैलानियों का मन अपनी ओर लुभाता है। शिमला, कुल्लुमानली, चंबा, डलहौजी, खजियार, धर्मशाला, किन्नरकैलाश हिमाचल के सभी भाग प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं।
पयर्टन स्थलों से भेट Visit from the tourist sites
- डलहौजी
- खजियार
- चंबा
- धर्मशाला
- मैक्लोडगंज
- लाहुल्स्पिती
डलहौजी | Dalhousie
धौलाधार पर्वत श्रंखलायें के ढलानों पर देवदार और चिड के विशालकाय पेड़ो के बिच स्थित अपने शांत, सुरम्य, और सुन्दरता के कारण यहाँ का वातावरण खुशनुमा अस्तित्व महसूस कराता है। इन पर्वत मालाओं पर सघन हरियाली प्रचुर मात्र में फैली हुई है। यहाँ अनेक प्रकार की वनस्पति प्रजातीया, अनगिनत जीवजंतु और पशु-पक्षी नजर आते है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 1500 से 2500 मीटर के बिच है। यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का रमणीय दृश्य से यहाँ की पहाडियों के रंग भी बदल जाते है। जब ब्रिटिश गवर्नर लार्ड डलहौजी पहली बार इन वादियों में आकर मन्त्रमुग्ध हो गये। चम्बा के राजा से यहाँ की पाच पहाडियों को खरीद कर उसने इसे अपने ” विश्रामगृह ” के रूप में सन 1853 में स्थापित किया और यह डलहौजी के नाम से प्रख्यात हो गया। इस की प्राकृतिक खूबसूरती व सुखद जलवायु का एहसास करने अनेक कवी, महाकवि, लेखक, दार्शनिकों का आवागमन रहता है। अतीत के महाकवि रविन्द्रनाथ टैगोर एंव शुभाषचन्द्र बोस जैसे व्यक्ति यहाँ आकर ठहरे थे। यहाँ उनके नामो पर टैगोर मार्ग तथा सुभाष चौक नजर आते है।
इस नगर का मुख्य केंद्र गाँधी चौक है। यहाँ एक मुख्य डाकघर स्थापित है। यहाँ सैलानी घुड़सवारी का आनंद लेते है। यहाँ सुभाष चौक और गाँधी चौक को जोड़ने वाले दो रास्ते है जिनको एक ठंडी और दूसरी गरम सड़क के नाम से जाना जाता है। यहाँ के मुहल्लों के नाम भी बहुत रोचक है। जैसे लवर्स लेन, बर्डवुड, नारवुड, आशियाना, स्नोडन, शांतिवन, टैगोर मार्ग, सुभाष चौक, गाँधी चौक,आदि। डलहौजी के पर्यटक स्थल भी लोकप्रिय है जिनमे पंचमुला, सतधरा, सुभाष बावली, जदरी घाट, कालाटोप, डाईनकुंड और खजियार आदि।डलहौजी एक छोटा सा शहर है जहा पर आप पैदल भी घूम सकते है। यहाँ पर्वतीय स्थल केवल 13 वर्ग किलोमीटर में फैला है। मोटीटिब्बा , पैटीय पहाडियों के पास एक बस स्थानक है। टैक्सी स्टैंड, होटल रेस्टोरेंट है। डलहौजी का निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट में है। और हवाई अड्डा कांगड़ा में है। दिल्ली से यहाँ अपने वाहन पहुचने के लिए12 घंटे का सफ़र तय करना पड़ता है। हिमाचल पर्यटन विभाग के यहाँ प्रत्येक स्थान पर अपने होटेल है।
खजियार | Khajiyar
“खजियार” दुनिया के प्रसिद्ध 160 मिनी ” स्विट्जरलैंड ” में से एक है।। यूरोप में बसे ”स्विट्जरलैंड” से ” खजियार ” झील बहुत ही सुंदर और मनमोहक है। खजियार को भारत का “स्विट्जरलैंड” कहा जाता है। डलहौज़ी से 22 किलोमीटर दूर स्थित खजियार को ब्रिटिश अधिकारियों ने एक गोल्फ ग्राउंड बनाया था। चीड़ देवदार के लंबे-लंबे, हरे भरे वृक्ष, नर्म, मुलायम, मखमली हरियाली मन को मोहित करनेवाली हसीन वादीया ”स्विट्जरलैंड” से कम नहीं है। खजियार मिनी ” स्विट्जरलैंड ” और मिनी ” गुलमर्ग ” के नाम से जाना जाता है। प्रकृति यहां पूरे जोश में नजर आती है। झील किनारे भगवान शिव का मंदिर है। खजियार में रुकने के लिए रेस्टारेंट, रेस्ट हॉउस और बंगले बने हुए है। दोस्तों अगर आप डलहौजी या चंबा जाते हो तो ” खजियार ” जाने के लिए आधे घंटे का रास्ता है। हरी नरम घास से ढका हुआ यह स्थान मध्य में एक छोटी सी झील है। यहाँ घुड़सवारी के शौक़ीन अकसर दिखाई पड़ेंगे। विदेशी पर्यटक भी नजर आयेंगे। आज इसे पिकनिक स्थल के नाम से भी जाना जाता है।
चंबा | Chamba
चंबा भारत के हिमाचल प्रदेश में रावी नदी के किनारे बसा हुआ है। चंबा शहर अपनी कशीदाकारी याने की सुई धागा से कपड़ो पर हस्तकला करने में महसूर है। हस्तकला काम के लिए लोकप्रिय है। चंबा 966 मीटर ऊँची पहाड़ी है। प्राचीन काल में चंबा राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। राजा साहिल वर्मन ने ई.920 में चंबा नगर को स्थापित किया था। राजा ने अपनी पुत्री चंपावती के नाम पर चंबा नाम रखा। प्राचीन काल की निशानियाँ आज भी हमें चंबा में देखने को मिलती है।यहाँ प्राचीन वैभव ,उत्कृष्ट वास्तु शिल्प, धातु शिल्प, काष्ठकला, पहाड़ी चित्रकला और कशीदाकारी भी काफी महशूर है। चंपावती मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, भादल घाटी, भरमौर, चौघान, वज्रेश्वरी मंदिर, सुई माता मंदिर, हरियार मंदिर, रंगमहल, कूंरा, छतरांड़ी, चंडी महल , भूरासिंह संग्रहालय, चंबा चर्च आदि आकर्षण के केंद्र बने हुए है।
धर्मशाला | Dharmshala
धर्मशाला कांगड़ा शहर में है, जो कांगड़ा से 8 किलोमीटर दूर है। धर्मशाला हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में एक पर्यटन स्थल है। धर्मशाला में दलाई रामा का निवास रह चूका है इसलिए इस जगह को पवित्र स्थान का दर्जा प्राप्त है। धर्मशाला के दो हिस्से हैं जैसे धर्मशाला के निचले हिस्से को धर्मशाला और ऊपरी हिस्से को मैकलॉडगंज के नाम से जाना जाता है।प्राचीन काल में धर्मशाला पर कटोच वंश के राजा का राज था। अंग्रेजों ने सन 1848 में धर्मशाला अपने कब्जे में किया। उसके बाद 1860 में गोरखा लोग आये थे। दिल्ली क्षेत्र में काम करनेवाले अंग्रेजों के लिए धर्मशाला लोकप्रिय हिलस्टेशन था। गोरखा लोगों ने भारत के स्वतन्त्रता संग्रम में भाग लिया था। भारतीय राष्ट्रिय सेना के कप्तान राम सिंग ठाकुर ने ” कदम कदम बढ़ाए जा ” यह गीत बोला था।
धर्मशाला में राजसी हिमालय पर्वत श्रृंखला में बसा दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट स्टेडियम है। युद्ध स्मारक धर्मशाला है जो शहीदों के स्मरणार्थ बनाया गया था। यहाँ पर जीपीजी कॉलेज है, जो अंग्रेजों ने बनाया था। धर्मशाला से 11 किमी के दुरी पर डलझील है।
मैक्लोडगंज | McLeodGanj
भारत में, अग्रेजों ने 1885 के शासनकाल के दौरान हिमालय की पश्चिमी सीमा में अपनी बस्तियों की स्थापना की। 1849 के दूसरे एंग्लो-सिख युद्ध के समय, अंग्रेजों ने कांगड़ा को रहने के लिए जगह बनाई थी। एक शिविर बनाया गया था जिसे “धर्मशाला” के नाम से जाना जाता है। कुछ दिनों के बाद, यह स्थान कांगड़ा जिले का प्रसिद्ध स्थान बन गया और धीरे-धीरे लोग रहने लगे। ” मैकलोडगंज ” का नाम पंजाब के लेफ्टिनेंट गव्हर्नर डेविड मैकलेओड के नाम पर रखा गया है। लॉर्ड एल्गिन 1862 से 1863 तक भारत का वायसराय था। ” धर्मधाला ” से जाते समय लॉर्ड एल्गिन का मृत्यु 1863 में हुआ। उनको फ़ोर्सिथगंज के सेंट जॉन चर्च इन-वाइल्डनेस, में दफनाया गया था।
मैक्लोडगंज, कांगड़ा जिले में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के पास स्थित है। 1959 में बौद्ध धर्म गुरु दलाई रामा हजारों अनुयायियों के साथ तिब्बत से आए और मैक्लोडगंज में रहे। यहाँ की महशूर जगह दलाई रामा का मंदिर है। इस जगह को मिनी ” ल्हासा ” कहते है। शांति चाहिए तो मैक्लोडगंज चले जाइये। यहाँ के मठ मुख्य आकर्षण के केंद्र बने है। भिक्षुओ को उनकी पारंपरिक पोशाक में प्राथना चक्र घुमाते देखना यहाँ अनोखा अनुभव हैं। हिमाचल में बिंदु सारस नदी के किनारे संत चिन्मयानंद आश्रम है जहा आध्यात्मिकता के साथ साथ विद्या व चिकित्सा का भी महत्वपूर्ण केंद्र बने हुए है। दलाई लामा का निवास स्थान नोर्बुलिन्का पैलेस और तिब्बिती इंस्टिट्यूट ऑफ़ फरफॉर्मिंग आर्ट्स दोनों बर्फ से ढके पहाड़ को और भी आकर्षक बनाते है।
मैकडोलगंज के पर्यटन स्थल | Tourist places in McDougalganj
भागसूनाग फॉल | Bhagasunag Falls
मैक्लोडगंज से लगभग 10 किलोमीटर के दुरी पर भागसूनाग मंदिर है। थोड़ी दुरी पर भागसूनाग फॉल है जो बहुत ही मनमोहक है। ऊंचाई से गिरता हुआ धुँवाधार पानी, देवदार और चीड़ के वृक्ष की हरियाली इस जगह को हसीन बना देती है। भागसू झरना प्रकृति प्रेमियों को अपने तरफ आकर्षित करता है।
भागसूनाग फॉल का इतिहास कुछ इस तरह है की, एक बार नागों के देवता और राजा भागसू के साथ झरने के पानी के लिए लढाई हुई थी। इस लड़ाई में नागों के देवताओं का विजय हुआ लेकिन राजा को माफ करके उसका राज्य सोप दिया। लड़ाई के बाद राजा ने ” भागसूनाग मंदिर ” बनाया।
नामग्याल मठ | Namgyal Math
नामग्याल मठ दर्शनीय स्थल है। भारत में गंगटोक की पहाड़ियों में बसा यह मठ तिब्बती साहित्य और हस्तकला का दर्शन कराता है। इस मठ की स्थापना सिक्किम के 11 वे राजा, सर ताशी नामग्याल ने सन 1958 में की थी। यह मठ बौद्ध धर्म और बौद्ध दर्शन का प्रमुख केंद्र है।
ट्रायंड मैकलोडगंज | Triand McLonggun
मैकलोडगंज से लगभ 10 किलोमीटर दुरी पर ट्रायंड लोकप्रिय ट्रेक है। यह स्थान बहुत ऊँचा है, जो हिमालय के ट्रेकिंग का अनुभव देता है।
डलझील | Dal Lake
डलझील मैकलोडंगज के पर्यटन स्थलों में से एक प्रमुख लोकप्रिय झील है। डलझील कांगड़ा जिले के तोता रानी गांव के पास है। डलझील श्रीनगर और कश्मीर में प्रसिद्ध झील है। यह झील 19 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है और तीन दिशाओं से घिरी हुई है। कश्मीर घाटी की अनेक झीले आगकर इस झील से मिली हुई है। इस झील के चार जलाशय है, गगरीबल, लोकुट डल, बोट डल और नागिन।
मसरूर टेम्पल | Masaror Temple
कांगड़ा से 15 किलोमीटर दूर दक्षिण में मसरूर टेम्पल है। यहाँ पर बारीक़ तरासे 15 शिखर मंदिरों वाली यह सरंचना गुफाओं के अंदर स्थित है जो मसरूर मंदिर के नाम से जाना जाता है। धर्मशाला को हिमाचल की शीतकालीन राजधानी कहा जाता है। धर्मशाला के पास पालमपुर और नूरपुर दो काफी रोचक स्थल है। पालमपुर में चाय के बागान मोहित करनेवाले होते है। नूरपुर का महाकाव्यों में वर्णन काफी दिलचस्प जगाता है।
लाहुल्स्पिती | Lahoul Spiti
हिमाचल प्रदेश की सीमावर्ती लाहुल व स्पीती घाटी आसपास होने के कारण “ट्विन वैली” के नाम से जाना जाता है। यहाँ बंजर पहाड़ अधिक नजर आयेंगे। हरियाली कम नजर आती है। ताबो , केलांग, पिनवैली नेशनल पार्क, गोंधला, दारचा, बारालाचा दर्रा, सारचु, शांषा, कुंजुनपास, काजा आदि भी पर्यटन स्थल है।
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