Story of kurmanchal peaks:कुर्मांचल चोटियों की कहानी, hotel kurmanchal nainital uttarakhand, Kausani springs, Hill girl, nagar lucknow.
बर्फीली चोटियो का नाम लेते ही हमारे आँखों के सामने वह हरे हरे पेड़ -फुल फलो से लगे हुए, वह ठंडी-ठंडी वादिया आती है। जहाँ पर एक चिड़िया अपनेमधुर स्वर में हमेशा जुहो-जुहो की आवाज निकालती है और एक चिड़िया बड़े ही कर्कश आवाज में भोल-जाल कहकर चुप हो जाती है। जुहो-जुहो की निरंतर इस दर्द भरी पुकार की रट कुर्माचल की इन वादियो एवं घाटियों-बास के वनो मे तथा कौसानी के झरनों में गूंजती है।
ऐसा लगता है की ये आवाजे अभी भी कुछ कहना चाहती है। कहते है इस चिड़िया के बारे में कुर्माचल की बर्फीली घाटियों-वादियों में एक धार्मिक लोककथा प्रसिध्द है। एक चिड़िया जो जुहो-जुहो की लगातार रट लगाती है। किसी ज़माने में वहां पर एक वधु नाम की पहाड़ी कन्या थी जो बहुत ही रूपवंत थी। जो मैदानों झरनों की संगीत वृक्षो की घाटियों में पली बड़ी थी। लेकिन उसका पिता जो बहुत ही गरीब परिस्थिति का था। Story of kurmanchal peaks
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उसने उसका ब्याह एक ऐसे मैदानों में कर दिया.. जहाँ मैदान सूरज आग की तरह तपता है। जहाँ झरनों और बंगलो का कोई नामो निशान नहीं था। जहाँ भूके अजगरो की तरह सूरज की धडकती लपटे आदमी को निगल जाती है। वधु के वहा पर कुछ दिन महीने, जैसे.. सर्दी और वर्षा तो किसी तरह कट गई पर गरमिया आने पर वोह अकुला उठी। Story of kurmanchal peaks
उसने अपने मायके जाने की प्रार्थना अपने सास और ननद से की। पर सास और ननद ने उसे इनकार कर दिया। वह धुप में तपते गुलाब की तरह मुरझाने लगी। श्रुंगार छुटा, खाना पीना छुटा, अंत में सास बोली अच्छा ठीक है कल जाना।
वधु सुबह उठकर अपने सांस से बोली.. (जुहो) मै जाऊ क्या (जुहो का मतलब “मै जाऊ क्या” है) सास ने फिर कहाँ (भोल जाल) कल सुबह जाना। (भोल जाल का मतलब”कल जाना” है)
यह सुनकर वह और भी मुरझा गई और एक दिन किसी तरह काटा। दुसरे दिन फिर वधुने व्याकुलता से पूछा.. रोज सास नाराज होकर मुंहँ फेर लेती थी और कहती थी की कल जाना – (भोल जाल)
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जेष्ट का महिना आया, ऐसा लग रहा था की आसमान से सूरज आग की लपटे फेक रहा हो, वृक्षों पर से चिड़ियाँ चक्कर खाकर गिरने लगी, वधुने फिर हाफते हुए सूखे गले से अंतिम बार कहाँ.. माँ जी मै क्या अपने मायके जाऊ (जुहो) सास ने फिर कहा (भोल जाल) मतलब कल जाना। उसके बाद वधु कुछ नही बोली शाम को वधु एक वृक्ष के निचे प्राणहिन् मिली।
वधु धुप से पूरी तरह काली पड़ गई थी, जिस वुक्ष के निचे वधु प्राणहीन मिली उस वृक्ष पर चिड़िया बैठी थी जो
गर्दन हिलाकर कह रही थी.. जुहो..जुहो.. और बाद में कर्कस आवाज में ..भोल जाल.. कह कर चुप हो जाती थी।
कहते है आज भी चिड़िया अपने दर्द भरे स्वर में लगातार जुहो..जुहो की रट लगाती है और थोड़े देर बाद एक चिड़िया कर्कस स्वर में भोलजाल कहकर चुप हो जाती है।